Wednesday, March 11, 2015

Myanmar to launch probe after student rally crackdown

  Edit
Myanmar on Wednesday announced an inquiry into “whether security forces acted properly in dispersing the protesters” who gathered downtown on March 5 in the nation’s commercial hub, AFP reported. Student-led rallies calling for education reform have twice been brutally suppressed in recent days, sparking international concern and drawing fierce criticism from Aung San Suu Kyi’s opposition party. It said the tactics echoed those used under the former military government.
  Edit

Italy’s high court upholds Berlusconi’s acquittal in ‘bunga bunga’ case

Former Italian Prime Minister Silvio Berlusconi’s acquittal in a prostitution case was upheld by the country’s highest court on Tuesday. The Court of Cassation denied the prosecutors’ appeal of Berlusconi’s acquittal of charges that he paid for sex with an underage prostitute and then tried to cover it up. The court is due to release a written ruling within 90 days. “It’s a great success,” AP quoted Berlusconi’s defense attorney, Michaela Andresano, as saying. “The court accepted our arguments and rejected the prosecutors’ appeal.”Berlusconi was previously convicted by a lower court. He was sentenced to seven years in jail and issued a lifetime ban from holding public office. In 2014, an appeals court reversed the lower court’s decision. However, Berlusconi is not completely off the hook; he still faces an investigation for allegedly bribing witnesses in the case – referred to as ‘bunga-bunga’ – and is on trial in Naples for alleged political corruption.
  Edit

US Army helicopter crashes in Florida, 11 troops missing

Seven Marines and four soldiers were missing early Wednesday after an Army helicopter crashed during a night training exercise at Eglin Air Force Base in the Florida Panhandle, AP said. The Marines are part of a Camp Lejeune-based special operations group and the soldiers are from a Hammond, Louisiana-based National Guard unit, according to base officials. The helicopter was reported missing around 8:30pm Tuesday and search and rescue crews found debris from the crash around 2am Wednesday. The helicopter was on a routine training mission on a remote swath of beach between Pensacola and Destin.

प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव का आम आदमी पार्टी वालंटियर के नाम खुला पत्र


11 मार्च 2015
प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव का आम आदमी पार्टी वालंटियर के नाम खुला पत्र
प्यारे दोस्तों,
हमें पता है कि पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से देश और दुनिया भर के आप सभी कार्यकर्ताओं के दिल को बहुत ठेस पहुँची है. दिल्ली चुनाव की ऐतिहासिक विजय से पैदा हुआ उत्साह भी ठंडा सा पड़ता जा रहा है. आप ही की तरह हर वालंटियर के मन में यह सवाल उठ रहा है कि अभूतपूर्व लहर को समेटने और आगे बढ़ने की इस घड़ी में यह गतिरोध क्यों? कार्यकर्ता यही चाहते हैं कि शीर्ष पर फूट न हो, कोई टूट न हो. जब टीवी और अखबार पर पार्टी के शीर्ष नेताओं में मतभेद की खबरें आती हैं, आरोप-प्रत्यारोप चलते हैं, तो एक साधारण वालंटियर असहाय और अपमानित महसूस करता है. इस स्थिति से हम भी गहरी पीड़ा में हैं.
पार्टी-हित और आप सब कार्यकर्ताओं की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हम दोनों ने पिछले दस दिनों में अपनी तरफ से इस आरोप-प्रत्यारोप की कड़ी में कुछ भी नहीं जोड़ा. कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब दिए, लेकिन अपनी तरफ से सवाल नहीं पूछे. हमने कार्यकर्ताओं और समर्थकों से बार-बार यही अपील की कि पार्टी में आस्था बनाये रखें. व्यक्तिगत रूप से हम सबकी सीमाएं होती हैं लेकिन संगठन में हम एक-दूसरे की कमी को पूरा कर लेते हैं. इसीलिए संगठन बड़ा है और हममें से किसी भी व्यक्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण है. इसी सोच के साथ हमने आज तक पार्टी में काम किया है और आगे भी काम करते रहेंगे.
लेकिन कल चार साथियों (सर्वश्री मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, गोपाल राय और पंकज गुप्ता) के सार्वजनिक बयान के बाद हम अपनी चुप्पी को बहुत ही भारी मन से तोड़ने पर मजबूर हैं. राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बहुमत की राय मुखरित करने वाले इस बयान को पार्टी के मीडिया सेल की ओर से प्रसारित किया गया, और पार्टी के आधिकारिक फेसबुक, ट्विटर और वेबसाइट पर चलाया गया. ऐसे में यदि अब हम चुप रहते हैं तो इसका मतलब यही निकाला जायेगा कि इस बयान में लगाये गए आरोपों में कुछ न कुछ सच्चाई है. इसलिए हम आप के सामने पूरा सच रखना चाहते हैं.
आगे बढ़ने से पहले एक बात स्पष्ट कर दें. उपरोक्त बयान में हम दोनों के साथ शांति भूषण जी को भी जोड़ कर कुछ आरोप लगाये गए हैं. जैसा कि सर्वविदित है, दिल्ली चुनाव से पहले शांति भूषण जी ने कई बार ऐसे बयान दिए जिससे पार्टी की छवि और पार्टी की चुनावी तैयारी को नुकसान हो सकता था. उनके इन बयानों से पार्टी के कार्यकर्ताओं में निराशा और असंतोष पैदा हुआ. ऐसे मौकों पर हम दोनों ने शांति भूषण जी के बयानों से सार्वजनिक रूप से असहमति ज़ाहिर की थी. चूँकि इन मुद्दों पर हम दोनों की राय शांति भूषण जी से नहीं मिलती है, इसलिए बेहतर होगा कि उनसे जुड़े प्रश्नों के उत्तर उनसे ही पूछे जाये.
इससे जुड़ी एक और मिथ्या धारणा का खंडन शुरू में ही कर देना जरूरी है. पिछले दो हफ्ते में बार-बार यह प्रचार किया गया है कि यह सारा मतभेद राष्ट्रीय संयोजक के पद को लेकर है. यह कहा गया कि अरविंद भाई को हटाकर योगेन्द्र यादव को संयोजक बनाने का षड्यंत्र चल रहा था. सच ये है कि हम दोनों ने आज तक किसी भी औपचारिक या अनौपचारिक बैठक में ऐसा कोई जिक्र नहीं किया. जब 26 फरवरी की बैठक में अरविंद भाई के इस्तीफे का प्रस्ताव आया तब हम दोनों ने उनके इस्तीफे को नामंजूर करने का वोट दिया. और कुछ भी मुद्दा हो, राष्ट्रीय संयोजक का पद न तो मुद्दा था, न है.
यह सच जानने के बाद सभी वालंटियर पूछते हैं “अगर राष्ट्रीय संयोजक पद पर विवाद नहीं था तो आखिर विवाद किस बात का? इतना गहरा मतभेद शुरू कैसे हुआ?” हमने यथासंभव इस सवाल पर चुप्पी बनाये रखी, ताकि बात घर की चारदीवारी से बाहर ना जाए. लेकिन अब हमें महसूस होता है कि जब तक आपको यह पता नहीं लगेगा तब तक आपके मन में भी संदेह और अनिश्चय पैदा हो सकता है. इसलिए हम नीचे उन मुख्य बातों का ज़िक्र कर रहे हैं जिनके चलते पिछले दस महीनो में अरविन्द भाई और अन्य कुछ साथियों से हमारे मतभेद पैदा हुए. आप ही बताएं, क्या हमें यह मुद्दे उठाने चाहिए थे या नहीं?
1. लोक-सभा चुनाव के परिणाम आते ही अरविंद भाई ने प्रस्ताव रखा कि अब हम दुबारा कॉंग्रेस से समर्थन लेकर दिल्ली में फिर से सरकार बना लें. समझाने-बुझाने की तमाम कोशिशों के बावजूद वे और कुछ अन्य सहयोगी इस बात पर अड़े रहे. दिल्ली के अधिकाँश विधायकों ने उनका समर्थन किया. लेकिन दिल्ली और देश भर के जिस-जिस कार्यकर्ता और नेता को पता लगा, अधिकांश ने इसका विरोध किया, और पार्टी छोड़ने तक की धमकी दी. पार्टी ने हाई कोर्ट में विधानसभा भंग करने की मांग कर रखी थी. यूँ भी कॉंग्रेस पार्टी लोक सभा चुनाव में जनता द्वारा खारिज की जा चुकी थी. ऐसे में कॉंग्रेस के साथ गठबंधन पार्टी की साख को ख़त्म कर सकता था. हमने पार्टी के भीतर यह आवाज़ उठाई. यह आग्रह भी किया कि ऐसा कोई भी निर्णय पी.ए.सी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की राय के मुताबिक़ किया जाए. लेकिन लेफ्टिनेंट गवर्नर को चिट्ठी लिखी गयी और सरकार बनाने की कोशिश हुई. यह कोशिश विधान सभा के भंग होने से ठीक पहले नवंबर माह तक चलती रही. (यहाँ व इस चिठ्ठी में कई और जगह हम पार्टी हित में कुछ गोपनीय बातें सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं) हम दोनों ने संगठन के भीतर हर मंच पर इसका विरोध किया. इसी प्रश्न पर सबसे गहरे मतभेद की बुनियाद पड़ी. यह फैसला हम आप पर छोड़ते हैं कि यह विरोध करना उचित था या नहीं. अगर उस समय पार्टी कॉंग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना लेती तो क्या हम दिल्ली की जनता का विश्वास दोबारा जीत पाते?
2. लोक सभा चुनाव का परिणाम आते ही सर्वश्री मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और आशुतोष ने एक अजीब मांग रखनी शुरू की. उन्होंने कहा कि हार की जिम्मेवारी लेते हुए पी.ए.सी के सभी सदस्य अपना इस्तीफा अरविन्द भाई को सौंपे, ताकि वे अपनी सुविधा से नयी पी.ए.सी का गठन कर सके. राष्ट्रीय कार्यकारिणी को भंग करने तक की मांग उठी. हम दोनों ने अन्य साथियों के साथ मिलकर इसका कड़ा विरोध किया. (योगेन्द्र द्वारा पी. ए. सी. से इस्तीफे की पेशकश इसी घटना से जुडी थी) अगर हम ऐसी असंवैधानिक चालों का विरोध न करते तो हमारी पार्टी और कांग्रेस या बसपा जैसी पार्टी में क्या फरक रह जाता ?
3. महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखण्ड और जम्मू-कश्मीर में पार्टी के चुनाव लड़ने के सवाल पर पार्टी की जून माह की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी कार्यकर्ताओं का मत जानने का निर्देश दिया गया था. कार्यकर्ताओं का मत जानने के बाद हमारी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बहुमत की यह राय थी कि राज्यों में चुनाव लड़ने का फैसला राज्य इकाई के विवेक पर छोड़ देना चाहिए. यह अरविन्द भाई को मंज़ूर ना था. उन्होंने कहा कि अगर कहीं पर भी पार्टी चुनाव लड़ी तो वे प्रचार करने नहीं जायेंगे. उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय कार्यकारिणी को अपना फैसला पलटना पड़ा, और राज्यों में चुनाव न लड़ने का फैसला हुआ. आज यह फैसला सही लगता है, उससे पार्टी को फायदा हुआ है. लेकिन सवाल यह है कि भविष्य में ऐसे किसी फैसले को कैसे लिया जाय? क्या स्वराज के सिद्धांत में निष्ठा रखने वाली हमारी पार्टी में राज्यों की स्वायतता का सवाल उठाना गलत है?
4. जुलाई महीने में जब कॉंग्रेस के कुछ मुस्लिम विधायकों के बीजेपी में जाने की अफवाह चली, तब दिल्ली में मुस्लिम इलाकों में एक गुमनाम साम्प्रदायिक और भड़काऊ पोस्टर लगा. पुलिस ने आरोप लगाया कि यह पोस्टर पार्टी ने लगवाया था. श्री दिलीप पांडे और दो अन्य वालंटियर को आरोपी बताकर इस मामले में गिरफ्तार भी किया. इस पोस्टर की जिम्मेदारी पार्टी के एक कार्यकर्ता श्री अमानतुल्लाह ने ली, और अरविन्द भाई ने उनकी गिरिफ़्तारी की मांग की (बाद में उन्हें ओखला का प्रभारी और फिर पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया) योगेन्द्र ने सार्वजनिक बयान दिया कि ऐसे पोस्टर आम आदमी पार्टी की विचारधारा के खिलाफ हैं. साथ ही विश्वास जताया कि इस मामले में गिरफ्तार साथियों का इस घटना से कोई सम्बन्ध नहीं है. पार्टी ने एक ओर तो कहा कि इन पोस्टर्स से हमारा कोई लेना देना नहीं है, लेकिन दूसरी ओर योगेन्द्र के इस बयान को पार्टी विरोधी बताकर उनके खिलाफ कार्यकर्ताओं में काफी विष-वमन किया गया. आप ही बताइये, क्या ऐसे मुद्दे पर हमें चुप रहना चाहिए था?
5. अवाम नामक संगठन बनाने के आरोप में जब पार्टी के कार्यकर्ता करन सिंह को दिल्ली इकाई ने निष्काषित किया, तो करन सिंह ने इस निर्णय के विरुद्ध राष्ट्रीय अनुशासन समिति के सामने अपील की, जिसके अध्यक्ष प्रशांत भूषण हैं. करन सिंह के विरुद्ध पार्टी-विरोधी गतिविधियों का एक प्रमाण यह था कि उन्होंने पार्टी वालंटियरों को एक एस.एम.एस भेजकर बीजेपी के साथ जुड़ने का आह्वान किया था. करन सिंह की दलील थी कि यह एस.एम्.एस फर्जी है, जिसे कि पार्टी पदाधिकारियों ने उसे बदनाम करने के लिए भिजवाया था. अनुशासन समिति का अध्यक्ष होने के नाते प्रशांत भूषण ने इस मामले की कड़ी जांच पर ज़ोर दिया, लेकिन पार्टी के पदाधिकारी टाल-मटोल करते रहे. अंततः करन सिंह के अनुरोध पर पुलिस ने जाँच की और एस.एम.एस वाकई फर्ज़ी पाया गया. पता लगा की यह एस.एम.एस दीपक चौधरी नामक वालंटियर ने भिजवाई थी. जाँच को निष्पक्ष तरीके से करवाने की वजह से उल्टे प्रशांत भूषण पर आवाम की तरफदारी का आरोप लगाया गया. इसमे कोई शक नहीं कि बाद में अवाम पार्टी विरोधी कई गतिविधियों में शामिल रहा, लेकिन आप ही बताइए अगर कोई कार्यकर्ता अनुशासन समिति में अपील करे तो उसकी निष्पक्ष सुनवाई होनी चाहिए या नहीं?
6. जब दिल्ली चुनाव में उम्मीदवारों का चयन होने लगा तब हम दोनों के पास पार्टी कार्यकर्ता कुछ उम्मीदवारों की गंभीर शिकायत लेकर आने लगे. शिकायत यह थी कि चुनाव जीतने के दबाव में ऐसे लोगों को टिकट दिया जा रहा था जिनके विरुद्ध संगीन आरोप थे, जिनका चरित्र बाकी पार्टियों के नेताओं से अलग नहीं था. शिकायत यह भी थी की पुराने वालंटियर को दरकिनार किया जा रहा था और टिकट के बारे में स्थानीय कार्यकर्ताओं की बैठक में धांधली हो रही थी. ऐसे में हम दोनों ने यह आग्रह किया कि सभी उम्मीदवारों के बारे में पूरी जानकारी पहले पी.ए.सी और फिर जनता को दी जाये, ऐसे उम्मीदवारों की पूरी जाँच होनी चाहिए और अंतिम फैसला पी.ए.सी में विधिवत चर्चा के बाद लिया जाना चाहिए, जैसा कि हमारे संविधान में लिखा है. क्या ऐसा कहना हमारा फ़र्ज़ नहीं था? ऐसे में हमारे आग्रह का सम्मान करने की बजाय हमपर चुनाव में अड़ंगा डालने का आरोप लगाया गया. अंततः हमारे निरंतर आग्रह की वजह से उम्मीदवारों के बारे में शिकायतों की जांच कि समिति बनी. फिर बारह उम्मीदवारों की लोकपाल द्वारा जाँच हुई, दो के टिकट रद्द हुए, चार को निर्दोष पाया गया और बाकि छह को शर्त सहित नामांकन दाखिल करने दिया गया. आप ही बताइए, क्या आप इसे पार्टी की मर्यादा और प्रतिष्ठा बचाए रखने का प्रयास कहेंगे याकि पार्टी-विरोधी गतिविधि?
इन छह बड़े मुद्दों और अनेक छोटे-बड़े सवालों पर हम दोनों ने पारदर्शिता, लोकतंत्र और स्वराज के उन सिद्धांतों को बार-बार उठाया जिन्हें लेकर हमारी पार्टी बनी थी. हमने इन सवालों को पार्टी की चारदीवारी के भीतर और उपयुक्त मंच पर उठाया। इस सब में कहीं पार्टी को नुकसान न हो जाये, इसीलिए हमने दिल्ली चुनाव पूरा होने तक इंतज़ार किया और 26 फरवरी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में एक नोट के जरिये कुछ प्रस्ताव रखे. हमारे मुख्य प्रस्ताव ये थे-
1. पार्टी में नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए एक समीति बने, जो दो करोड़ वाले चेक और हमारे उम्मीदवार द्वारा शराब रखने के आरोप जैसे मामलों की गहराई से जाँच करे ताकि ऐसे गंभीर आरोपों पर हमारी पार्टी का जवाब भी बाकी पार्टियों की तरह गोलमोल न दिखे.
2. राज्यों के राजनैतिक निर्णय, कम से कम स्थानीय निकाय के चुनाव के निर्णय, खुद राज्य इकाई लें. हर चीज़ दिल्ली से तय न हो.
3. पार्टी के संस्थागत ढाँचे, आतंरिक लोकतंत्र का सम्मान हो और पी.ए.सी एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकें नियमित और विधिवत हों.
4. पार्टी के निर्णयों में वालंटियर्स की आवाज़ सुनने और उसका सम्मान करने की पर्याप्त व्यवस्था हो.
हमने इन संस्थागत मुद्दों को उठाया और इसके बदले में हमें मिले मनगढंत आरोप. हमने पार्टी की एकता और उसकी आत्मा दोनों को बचाने का हर संभव प्रयास किया और हम ही पर पार्टी को नुकसान पंहुचाने का आरोप लगा. आरोप ये कि हम दोनों पार्टी को हरवाने का षड्यंत्र रच रहे थे, कि हम पार्टी के विरुद्ध दुष्प्रचार कर रहे थे, कि हम संयोजक पद हथियाने का षड्यंत्र कर रहे थे. आरोप इतने हास्यास्पद हैं कि इनका जवाब देने की इच्छा भी नहीं होती. यह भी लगता है कि कहीं इनका जवाब देने से इन्हें गरिमा तो नहीं मिल जायेगी. फिर भी, क्यूंकि इन्हें बार-बार दोहराया गया है इसलिए कुछ तथ्यों की सफाई कर देना उपयोगी रहेगा ताकि आपके के मन में संदेह की गुंजाइश ना बचे. (पत्र लम्बा न हो जाये इसलिए हम यहाँ प्रमाण नहीं दे रहे हैं. कुछ दस्तावेज योगेन्द्र की फेसबुकhttps://www.facebook.com/AapYogendra पर उपलब्ध हैं)
एक आरोप यह था की प्रशांत भूषण ने दिल्ली चुनाव में पार्टी को हरवाने की कोशिश की. दिल्ली चुनाव में उम्मीदवारों के चयन के बारे में जो सच्चाई ऊपर बताई जा चुकी है, इसे लेकर प्रशांत भूषण का मन बहुत खिन्न था. प्रशांत कतई नहीं चाहते थे की पार्टी अपने उसूलों के साथ समझौता करके चुनाव जीते. उनका कहना था कि गलत रास्ते पर चलकर चुनाव जीतना पार्टी को अंततः बर्बाद और ख़त्म कर देगा. उससे बेहतर ये होगा कि पार्टी अपने सिद्धांतों पर टिकी रहे, चाहे उसे अल्पमत में रहना पड़े. उन्हें यह भी डर था अगर पार्टी को बहुमत से दो-तीन सीटें नीचे या ऊपर आ गयी तो वह जोड़-तोड़ के खेल का शिकार हो सकती है, पार्टी के ही कुछ संदेहास्पद उम्मीदवार पार्टी को ब्लेकमेल करने की कोशिश कर सकते हैं. ऐसी भावनाएं व्यक्त करना और पार्टी को हराने की दुआ या कोशिश करना, ये दो बिलकुल अलग-अलग बातें हैं. योगेन्द्र ने पार्टी को कैसे नुक्सान पंहुचाया, इसका कोई खुलासा आरोप में नहीं किया गया है. जैसा कि हर कोई जानता है, इस चुनाव में योगेन्द्र ने 80 से 100 के बीच जनसभाएं कीं, हर रोज़ मीडिया को संबोधित किया, चुनावी सर्वे किये और भविष्यवाणी की और कार्यकर्ताओं को फोने और गूगल हैंगआउट किये.
एक दूसरा आरोप यह है कि प्रशांत भूषण ने पार्टी के खिलाफ प्रेस कौन्फेरेंस करने की धमकी दी. सच यह है कि उम्मीदवारों के चयन से खिन्न प्रशांत ने कहा था कि यदि पार्टी उम्मीदवारों के चरित्र के जाँच की संतोषजनक व्यवस्था नहीं करती है तो उन्हें मजबूरन इस मामले को सार्वजनिक करना पड़ेगा. ऐसे में, योगेन्द्र यादव सहित पार्टी के पंद्रह वरिष्ठ साथियों ने प्रशांत के घर तीन दिन की बैठक की. फैसला हुआ कि संदेह्ग्रस्त उम्मीदवारों की लोकपाल द्वारा जाँच की जायेगी और लोकपाल का निर्णय अंतिम होगा. यही हुआ और लोकपाल का निर्णय आने पर हम दोनों ने उसे पूर्णतः स्वीकार भी किया. पार्टी को तो फख्र होना चाहिए कि देश में पहली बार किसी पार्टी ने एक स्वतंत्र व्यवस्था बना कर अपने उम्मीदवारों की जाँच की.
एक और आरोप यह भी है कि योगेन्द्र ने चंडीगढ़ में पत्रकारों के साथ एक ब्रेकफास्ट मीटिंग में “द हिन्दू” अखबार को यह सूचना दी कि हरियाणा चुनाव का फैसला करते समय राष्ट्रीय कार्यकारिणी के निर्णय का सम्मान नहीं किया गया. यह आरोप एक महिला पत्रकार ने टेलीफोन वार्ता में लगाया, जिसे गुप्त रूप से रिकॉर्ड भी किया गया. लेकिन इस कथन के सार्वजनिक होने के बाद उसी बैठक में मौजूद एक और वरिष्ठ पत्रकार, श्री एस पी सिंह ने लेख लिखकर खुलासा किया कि उस बैठक में योगेन्द्र ने ऐसी कोई बात नहीं बतायी थी. उन्होंने पूछा है कि अगर ऐसी कोई भी बात बताई होती, तो बाकी के तीन पत्रकार जो उस नाश्ते पर मौजूद थे उन्होंने यह खबर क्यों नहीं छापी? उनके लेख का लिंकhttp://www.caravanmagazine.in/…/indian-express-yogendra-yad… है. आरोप यह भी है कि दिल्ली चुनाव के दौरान कुछ अन्य संपादकों को योगेन्द्र ने पार्टी-विरोधी बात बताई. यदि ऐसा है तो उन संपादकों के नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किये जाते?
फिर एक आरोप यह भी है कि प्रशांत और योगेन्द्र ने आवाम ग्रुप को समर्थन दिया. ऊपर बताया जा चुका है कि प्रशांत ने अनुशासनसमिति के अध्यक्ष के नाते आवाम के करन सिंह के मामले में निष्पक्ष जाँच का आग्रह किया. एक जज के काम को अनुशासनहीनता कैसे कहा जा सकता है? योगेन्द्र के खिलाफ इस विषय में कोई प्रमाण पेश नहीं किया गया. उल्टे, आवाम के लोगों ने योगेन्द्र पर ईमेल लिख कर आरोप लगाए जिसका योगेन्द्र ने सार्वजनिक जवाब दिया था. जब आवाम ने चुनाव से एक हफ्ता पहले पार्टी पर झूठे आरोप लगाये तो इन आरोपों के खंडन में सबसे अहम् भूमिका योगेन्द्र ने निभायी.
फिर भी चूंकि यह आरोप लगाये गए हैं, तो उनकी जांच जरूर होनी चाहिए. पार्टी का विधान कहता है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों के खिलाफ किसी भी आरोप की जाँच पार्टी के राष्ट्रीय लोकपाल कर सकते हैं. स्वयं लोकपाल ने चिट्ठी लिखकर कहा है कि वे ऐसी कोई भी जाँच करने के लिए तैयार हैं. हम दोनों लोकपाल से अनुरोध कर रहे हैं कि वे इन चारों साथियों के आरोपों की जांच करें. अगर लोकपाल हमें दोषी पाते हैं तो उनके द्वारा तय की गयी किसी भी सज़ा को हम स्वीकार करेंगे. लेकिन हमें यह समझ नहीं आता कि पार्टी विधान के तहत जांच करवाने की बजाय ये आरोप मीडिया में क्यों लगाये जा रहे हैं?
साथियों, यह घड़ी पार्टी के लिए एक संकट भी है और एक अवसर भी. इतनी बड़ी जीत के बाद यह अवसर है बड़े मन से कुछ बड़े काम करने का. यह छोटे छोटे विवादों और तू-तू मैं-मैं में उलझने का वक़्त नहीं है. पिछले कुछ दिनों के विवाद से कुछ निहित स्वार्थों को फायदा हुआ है और पार्टी को नुकसान. उससे उबरने का यही तरीका है कि सारे तथ्य सभी कार्यकर्ताओं के सामने रख दिए जाएँ. यह पार्टी कार्यकर्ताओं के खून-पसीने से बनी है. अंततः आप वालंटियर ही ये तय करेंगे कि क्या सच है क्या झूठ. हम सब राजनीति में सच्चाई और इमानदारी का सपना लेकर चले थे. आप ही फैसला कीजिये कि क्या हमने सच्चाई, सदाचार और स्वराज के आदर्शों के साथ कहीं समझौता किया? आपका फैसला हमारे सर-माथे पर होगा.
आप सब तक पहुँचाने के लिए हम यह चिठ्ठी मीडिया को दे रहे हैं. हमारी उम्मीद है कि पार्टी अल्पमत का सम्मान करते हुए इस चिठ्ठी को भी उसी तरह प्रसारित करेगी जैसे कल अन्य चार साथियों के बयान को प्रसारित किया था. लेकिन हम मीडिया में चल रहे इस विवाद को और आगे नहीं बढ़ाना चाहते. हम नहीं चाहते कि मीडिया में पार्टी की छीछालेदर हो. इसलिए इस चिठ्ठी को जारी करने के बाद हम फिलहाल मौन रहना चाहते हैं. हम अपील करते हैं कि पार्टी के सभी साथी अगले कुछ दिन इस मामले में मौन रखें ताकि जख्म भरने का मौका मिले, कुछ सार्थक सोचने का अवकाश मिले.
दोस्तों, अरविन्द भाई स्वस्थ्य लाभ के लिए बंगलूर में हैं. सबकी तरह हमें भी उनके स्वस्थ्य की चिंता है. आज अरविन्द भाई सिर्फ पार्टी के निर्विवाद नेता ही नहीं, देश में स्वच्छ राजनीती के प्रतीक है. पार्टी के सभी कार्यकर्ता चाहते हैं की वे पूरी तरह स्वस्थ होकर दिल्ली और देश के प्रति अपनी जिम्मेवारियों को निभा सकें. हमें विश्वास है कि वापिस आकर अरविन्द भाई पार्टी में बन गए इस गतिरोध का कोई समाधान निकालेंगे जिससे पार्टी की एकता और आत्मा दोनों बची रहें. हम दोनों आप सब को विश्वास दिलाना चाहते हैं कि हम सिद्धांतों से समझौता किये बिना पार्टी को बचने की किसी भी कोशिश में हर संभव सहयोग देंगे, हमने अब तक अपनी तरफ से बीच बचाव की हर कोशिश की है, और ऐसी हर कोशिश का स्वागत किया है. जो भी हो, हम अहम को आड़े नहीं आने देंगे. हम दोनों किसी पद पर रहे या ना रहे ये मुद्दा ही नहीं है. बस पार्टी अपने सिद्धांतों और लाखों कार्यकर्ताओ के सपनों से जुडी रहे, यही एकमात्र मुद्दा है. हम दोनों पार्टी अनुशासन के भीतर रहकर पार्टी के लिए काम करते रहेंगे.
आपके
प्रशांत भूषण , योगेन्द्र यादव
Prashantbhush@gmail.com
Yogendra.yadav@gmail.com
(उम्मीदवार चयन से सम्बंधित प्रशांत भूषण की कुछ इमेल्स हम यहाँ संलग्न कर रहे हैं)

Competitiveness, climate, security Finn’s priorities Ministry of Finance release Finnish road map of EU presidency. Finland i...