हर मां का आंसू एक है! हिंसा नही! कभी नही! कहीं नही!
शंाति पहल व जनआंदोलनो का राष्ट्रीय समंवय मुज्ज़फरनगर में हुई हिंसा में मारे गये सभी इंसानों के लिये अपना दुःख व्यक्त करते है। हम मानते है कि जो हुआ उसके लिये हम सब जिम्मेदार है। पर हमें अब सब संभालना होगा! हमारा मानना है कि यह समय एक दूसरे को इल्जाम देने का नहीं वरन् हर एक का दर्द समझने का है।
दंगाईयों को सजा मिले पर मांओ की कोख क्यों सूनी हो? गरीब की रोटी क्यों छीने? देश में कानून है, व्यवस्था है। माना की कमियंा जरुर होंगी पर हम सब इसी के साये में साथ में जीते है। आज किसी की गलती के कारण हमारे खुशगवार मौसम में काले साये छा गये। कितनी ही मांये गीली आंखों से विरानों में ताकती है। गांव गमगीन हो गये। चूल्हे खाली। हर तरफ अपवाहें, डर। क्यों?
जो हुआ उसकी भरपाई नही हो सकती पर जो बचा है क्या उसे भी गंवाना है? नही हमें सब संभालना है। इस मिट्टी ने हमें साथ-साथ रहना जीना सिखाया है। किसी के बहकावे मंे नही आना है। हम कब तक ऐसे रह सकते है? गांव खाली और लोग खेतों में छिपे है। त्योहारों का मौसम है। हमने ईद मनाई है दिवाली मनानी है। बकराईद मनानी है। ऐसे लड़-लड़कर कब तक जीयेंगे। जिनके साथ रहते है वो भला पराये कैसे हो गये? रोजमर्रा की जिंदगी में तो पड़ौसी ही काम आते है।
जिस तरह की सोच पनपाई जा रही है, जो माहौल बनाया जा रहा है, वह शांति और भाईचारे और विकास के लिए खतरनाक है। लोगों को फिरकों और सम्प्रदायों में ही बंाटा जा रहा है। जिससे लोग नफरत की आग में जलने को मजबूर हैं। हालात को सुधारने के लिए हमें खुद आगे आना होगा। लोगों को शांति और सद्भाव को कायम रखने का प्रयास करना ही होगा। जमीनी स्तर पर जब लोग एक दूसरे को समझने लगेंगें और उनके आपसी रिश्तेे मजबूत होंगे तो उन्हें कोई आपस में लड़ाने में कामयाब नहीं हो सकेगा। हम चुनाव की फसल क्यों बने! गरीबी-बेरोजगारी-जल-जंगल-जमीन खोते किसान-आदिवासी-मानवाधिकार-बर्बाद होता पर्यावरण शहरी गरीब आदि मुद्दों का हल खोज ना जरुरी है ना की कत्लेआम!
जरुरत मिल-बैठकर एक दूसरे को समझने और समझाने की है। हमारे उत्तर-प्रदेश में रहने वाले करोड़ों लोग धर्म, संस्कृति, राजनैतिक विचार, भाषा, स्थानीय जरूरत वगैरह के मुताबिक विभिन्नताओं में रहते आये है। हमारी रोजी-रोटी, व्यापार, खेती व्यवसाय सब आपस में कहीं जुड़ा है।
हमें इस अंधेरे में ही कोई रास्ता निकालना होगा। शंाति का संदेश फैलाना होगा। इसी सोच के साथ आज साथियों ने मुज्ज़फरनगर के कोतवाली से कचहरी-मीनाक्षी चौक-खालापार में पर्चे बांटे। शांति की बात की जिसे लोगो ने सराहा और माना की आज इस तरह के कदम उठाने की जरुरत है। खालापार की गलियांे में घूमने के बाद मस्जिद कुम्हारान के बाहर एक नुक्कड़ सभा भी हुई। नमाज़ियों का कहना था की गलियों में गंदगी हो रही है। हमारे मौहल्लों में जाने का डर फैलाया जा रहा है। इसे दूर करना होगा। लोगो ने शांति पहल का स्वागत व समर्थन किया।
हम साथी शहर के विभिन्न तबको के समाजकर्मियों के पास जाकर भी मिले। जिन्होने साथ मंे आने का फैसला किया है। यह सिलसिला जारी रहेगा।
यह तय किया गया की 16 सितंबर को मुज्ज़फरनगर में पीस लाईब्रेरी पर हम सुबह 9 बजे से शाम ़6.30 तक उपवास/रोज़े पर बैठेगें। हमारी सबसे अपील है कि वे इस शंाति पहल में शामिल हो।
मौ0 अमीर अंसारी सी0 एम0 यादव विमल
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